तरनि तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
झुके कुल सों जल परसन हित मनहुँ
सुहाए।
किध मुकुर सों मै लखत उझकि सब निज निज
सोभा।
कै प्रनवत जल जानि परम पावन फल लोभा।।
मनु आतप वारन तीर कौं सिमिटि सबै छाये
रहत।
कै हरि सेवा हित नै रहे निरखि नैन मन
सुख लहत ।1।
हिंदी मे व्याख्या – कवि कह रहे है कि यमुना नदी के किनारे तमाल के सुन्दर पेड लगे हुए है। उनकी डालिया यमुना नदी के किनारे झुकि हुइ है, जिसे देखकर ऐसा प्रतित होता है कि मानों वे यमुना नदि के पवित्र जल को स्पर्श करना चाहती हो। कवि कहते है कि ऐसा प्रतित होता है कि वे वृक्ष, जलरुपी दर्पण मे अपनी सोभा देखने के लिए मानो उचक उचक कर आगे आ रहे हो। फिर ऐसा लगता है कि वे झुक झुकर जल को पवित्र मानकर उतम फल की प्राप्ति के लिए प्रणाम कर रहे हों।
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तिन पे जेहि छिन चंद जोति राका निसि आवति।
जल में मिलिकै नम अवनी लो तान तनावति।।
होत मुकुरमय सबै तबै उज्जल इक ओभा ।
तन मन नैन जुड़ात देखि सुन्दर सो सोभा ।।
सो को कवि जो छवि कहि सके ता छन जमुना नीर की।
मिलि अवनि और अम्बर रहत छबि इक सी नभ तीर की।।2।।
हिंदी मे व्याख्या –
कवि कहते है कि जब पुर्णिमा की रात मे जब चाँद की किरणें जिस प्रकार यमुना के जल पर पड़ती है तो ऐसा लगता है कि मानों ये किरणें यमुना जल में मिलकर पृथ्वी से आकाश तक एक तीर सा तान रही हों। ऐसा लगता है कि ये किरणे उज्ज्वलमय प्रकाश दर्पण के समान प्रतीत हो रही हों। यमुना का ये सुन्दर नजारा देख कर तन, मन और आँखें सुख का अनुभव करती है। यमुना जल की इस सुन्दरता का वर्णन कोइ कवि नही कर सकता है। ऐसे समय मे पूणिमा के चाँद की किरणों से आकाश और नदी के किनारों की सुन्दरता आकाश से पृथ्वी तक जैसे एक समान ही दिखाई पड़ती हैं।
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परत चन्द्र प्रतिविम्ब कहूँ
जल मधि चमकायो ।
लोल लहर लहि नचत कबहुँ सोई मन भायो।
मनु हरि दरसन हेत चन्द्र जल बसत सुहायो ।
कै तरंग कर मुकुर लिये सोभित छबि छायो।।
के रास रमन में हरि मुकुट आभा जल दिखरात है।
के जल उर हरि मूरति बसति ता प्रतिबिम्ब लखात है। ।।3।।
हिंदी मे व्याख्या-
कवि कह रहे हैं कि यमुना के जल के मध्य में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब चमकता हुआ दिखाई पड़ रहा है। यमुना के जल की चंचल लहरों के हिलने से चन्द्रमा के हिलते हुए प्रतिबिम्ब को देखकर कवि को ऐसा लगता है, मानो वे चंचलता के साथ नृत्य कर रहे हों। चन्द्रमा के इस प्रतिबिम्ब की शोभा को देखकर, ऐसा लगता है कि मानो विष्णु (जिनका निवास स्थल जल में है) के दर्शन के लिए वह जल में उतर आऐ हों अथवा वह यह सोच कर यमुना के जल में आ बसे हो कि जब कृष्ण यमुना-तट पर, घुमने आएँगे, तब उसे उनके दर्शन प्राप्त हो जाएँगे। कवि कह रहे हैं कि चन्द्रमा की छवि, जल में ऐसी शोभा पा रही है, जैसे यमुना की लहरें, अपने हाथ में चन्द्रमा का प्रतिबिम्बरूपी दर्पण लिए हों अथवा रास-क्रीड़ा में रमे हुए, श्रीकृष्ण के मुकुट की आभा ही इस चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के रूप में, यमुना के जल में प्रतिबिम्बित हो रही हो। कवि चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर कल्पना कर रहे हैं कि यह भी हो सकता है कि यमुना के हृदय में चन्द्रमा के रूप में, भगवान श्रीकृष्ण की छवि बसी हुई है एवं यह प्रतिबिम्ब उन्हीं का है।
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